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ब्रा॒ह्म॒णो᳖ऽस्य॒ मुख॑मासीद् बा॒हू रा॑ज॒न्यः᳖ कृ॒तः। ऊ॒रू तद॑स्य॒ यद्वैश्यः॑ प॒द्भ्या शू॒द्रोऽअ॑जायत ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ब्रा॒ह्म॒णः᳖। अ॒स्य॒। मुख॑म्। आ॒सी॒त्। बा॒हूऽइति॑ बा॒हू। रा॒ज॒न्यः᳖। कृ॒तः ॥ ऊ॒रूऽइत्यू॒रू। तत्। अ॒स्य॒। यत्। वैश्यः॑। प॒द्भ्यामिति॑ प॒त्ऽभ्याम्। शू॒द्रः। अ॒जा॒य॒त॒ ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:31» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासु लोगो ! (अस्य) इस ईश्वर की सृष्टि में (ब्राह्मणः) वेद ईश्वर का ज्ञाता इनका सेवक वा उपासक (मुखम्) मुख के तुल्य उत्तम ब्राह्मण (आसीत्) है (बाहू) भुजाओं के तुल्य बल पराक्रमयुक्त (राजन्यः) राजपूत (कृतः) किया (यत्) जो (ऊरू) जाँघों के तुल्य वेगादि काम करनेवाला (तत्) वह (अस्य) इसका (वैश्यः) सर्वत्र प्रवेश करनेहारा वैश्य है (पद्भ्याम्) सेवा और अभिमान रहित होने से (शूद्रः) मूर्खपन आदि गुणों से युक्त शूद्र (अजायत) उत्पन्न हुआ, ये उत्तर क्रम से जानो ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्या और शमदमादि उत्तम गुणों में मुख के तुल्य उत्तम हों, वे ब्राह्मण, जो अधिक पराक्रमवाले भुजा के तुल्य कार्य्यों को सिद्ध करने हारे हों वे क्षत्रिय, जो व्यवहारविद्या में प्रवीण हों, वे वैश्य और जो सेवा में प्रवीण, विद्याहीन, पगों के समान मूर्खपन आदि नीच गुणयुक्त हैं, वे शूद्र करने और मानने चाहियें ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ब्राह्मणः) वेदेश्वरविदनयोः सेवक उपासको वा (अस्य) ईश्वरस्य (मुखम्) मुखमिवोत्तमः (आसीत्) अस्ति (बाहू) भुजाविव बलवीर्य्ययुक्तः (राजन्यः) राजपुत्रः (कृतः) निष्पन्नः (ऊरू) ऊरू इव वेगादिकर्मकारी (तत्) (अस्य) (यत्) (वैश्यः) यो यत्र तत्र विशति प्रविशति तदपत्यम् (पद्भ्याम्) सेवानिरभिमानाभ्याम् (शूद्रः) मूर्खत्वादिगुणविशिष्टो मनुष्यः (अजायत) जायते ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासवो ! यूयमस्य सृष्टौ ब्राह्मणो मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतो यदूरू तदस्य वैश्य आसीत् पद्भ्यां शूद्रोऽजायतेत्युत्तराणि यथाक्रमं विजानीत ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - ये विद्याशमदमादिषूत्तमेषु गुणेषु मुखमिवोत्तमास्ते ब्राह्मणाः। येऽधिकवीर्य्या बाहुवत्कार्य्यसाधकास्ते क्षत्रियाः। ये व्यवहारविद्याकुशलास्ते वैश्या ये च सेवायां साधवो विद्याहीनाः पादाविव मूर्खत्वादिनीचगुणयुक्तास्ते शूद्राः कार्य्या मन्तव्याश्च ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्या, शम, दम इत्यादी गुणांनी मुखासारखी उत्तम असतात ती ब्राह्मण होत. जी शक्तिमान व पराक्रमी असतात व सर्व कार्ये सिद्ध करतात तो क्षत्रिय होत. जी व्यवहार विद्येमध्ये प्रवीण असतात ती वैश्य होत. जी विद्याहीन व सेवेत तत्पर मूर्ख व नीच असून पायासमान असतील त्यांना शुद्र म्हटले जाते.